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रंग-ए-ख़ुलूस गंग-ओ-जमन में नहीं रहा - सलीम सरफ़राज़ कविता - Darsaal

रंग-ए-ख़ुलूस गंग-ओ-जमन में नहीं रहा

रंग-ए-ख़ुलूस गंग-ओ-जमन में नहीं रहा

क्या हुस्न था जो अर्ज़-ए-वतन में नहीं रहा

करता नहीं है दश्त-ए-तमन्ना में कोई रम

अब वो ग़ज़ाल शौक़-ए-ख़ुतन में नहीं रहा

अश्जार-ए-गुल को मैं ने ही सींचा तमाम-उम्र

ख़ुश्बू उसे मिली जो चमन में नहीं रहा

यक-लख़्त मुझ पे उस के सब असरार खुल गए

अब कोई जिन चराग़-ए-बदन में नहीं रहा

तब्दील हो गए हैं जवाँ-साल ख़ाल-ओ-ख़द

वो बाँकपन भी तेरे सुख़न में नहीं रहा

मैं तिश्ना-काम उस के किनारे गया 'सलीम'

लेकिन वो आब ख़ित्ता-ए-तन में नहीं रहा

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In Hindi By Famous Poet Saleem Sarfaraz. is written by Saleem Sarfaraz. Complete Poem in Hindi by Saleem Sarfaraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.