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अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते - सलीम सरफ़राज़ कविता - Darsaal

अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते

अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते

इक उम्र सर्फ़ हो गई उन को सँभालते

दुनिया सँवारने में रही अपने ख़द्द-ओ-ख़ाल

हम आइनों पे रह गए पत्थर उछालते

आख़िर ग़ुबार-ए-दश्त के हमराह हो लिए

कब तक हम इस को वादा-ए-फ़रदा पे टालते

कीड़े निकालते हैं गुल-ए-नौ-बा-नौ में आप

क्या ख़ूब था जो कीड़ों से रेशम निकालते

रखते हैं जो चराग़ सर-ए-रहगुज़ार आप

बेहतर था इस से अपने ही घर को उजालते

क़ाएम रहेंगे तुम से ही गुलशन में रंग-ओ-बू

रखियो न अपने ज़ेहन में ऐसे मुग़ालते

रोना इसी का आज भी रोते हो तुम 'सलीम'

गुज़रे हुए ज़माने पे अब ख़ाक डालते

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In Hindi By Famous Poet Saleem Sarfaraz. is written by Saleem Sarfaraz. Complete Poem in Hindi by Saleem Sarfaraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.