ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
जो बच के निकल आएगा तैराक वही है
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न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से
कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में
पुराने साहिलों पर नया गीत
वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
न इस तरह कोई आया है और न आता है
ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से
फिर जी उठे हैं जिस से वो इम्कान तुम नहीं
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
तुझ से बढ़ कर कोई प्यारा भी नहीं हो सकता