ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र
न इब्तिदा न कहीं इंतिहा में आता है
Mir Taqi Mir
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Gulzar
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Habib Jalib
Parveen Shakir
Wasi Shah
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तुम ने सच बोलने की जुरअत की
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे
कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो
ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने
वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ
ऐ शब-ए-हिज्र अब मुझे सुब्ह-ए-विसाल चाहिए
मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले
वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
मैं जानता हूँ मकीनों की ख़ामुशी का सबब
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला