तुम तो कहते थे कि सब क़ैदी रिहाई पा गए
फिर पस-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ रात-भर रोता है कौन
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जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
साल की आख़िरी शब
डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे
याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है
जुनूँ तब्दीली-ए-मौसम का तक़रीरों की हद तक है
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो
अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
फिर जी उठे हैं जिस से वो इम्कान तुम नहीं
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला