क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
हम से ज़ियादा तेरा तलबगार कौन है
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
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Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
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मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर
मैं उसे तुझ से मिला देता मगर दिल मेरे
कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में
बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद
तुम ने सच बोलने की जुरअत की
ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिर
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा