मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है
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एक तरफ़ तिरे हुस्न की हैरत एक तरफ़ दुनिया
मैं उसे तुझ से मिला देता मगर दिल मेरे
भला वो हुस्न किस की दस्तरस में आ सका है
वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं
तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया
ये आग लगने से पहले की बाज़-गश्त है जो
ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे
अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता
बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद