मैं जानता हूँ मकीनों की ख़ामुशी का सबब
मकाँ से पहले दर-ओ-बाम से मिला हूँ मैं
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देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ
कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते
ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र
दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर
'सलीम' अब तक किसी को बद-दुआ दी तो नहीं लेकिन
सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
जुदाई भी न होती ज़िंदगी भी सहल हो जाती
कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
अभी जो गर्दिश-ए-अय्याम से मिला हूँ मैं