जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
तो फिर इस के मअ'नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1598) Peoples Rate This
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया
अभी जो गर्दिश-ए-अय्याम से मिला हूँ मैं
साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में
सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है
मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं