ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
सूरत-ए-हाल के लिए वाक़िफ़-ए-हाल चाहिए
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अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
तमाम उम्र सितारे तलाश करता फिरा
ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र
ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी
ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने
न इस तरह कोई आया है और न आता है
मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न कर
रात को रात ही इस बार कहा है हम ने
कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते
ये आग लगने से पहले की बाज़-गश्त है जो