अहल-ए-ख़िरद को आज भी अपने यक़ीन के लिए
जिस की मिसाल ही नहीं उस की मिसाल चाहिए
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ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं
तू ने देखा नहीं इक शख़्स के जाने से 'सलीम'
मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले
याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है
न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
एक तरफ़ तिरे हुस्न की हैरत एक तरफ़ दुनिया
अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद
चराग़-ए-याद की लौ हम-सफ़र कहाँ तक है
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से
पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है