अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा
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दुनिया अच्छी भी नहीं लगती हम ऐसों को 'सलीम'
वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'
अभी जो गर्दिश-ए-अय्याम से मिला हूँ मैं
'सलीम' अब तक किसी को बद-दुआ दी तो नहीं लेकिन
क्या अजब कार-ए-तहय्युर है सुपुर्द-ए-नार-ए-इश्क़
न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया