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वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं - सलीम कौसर कविता - Darsaal

वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं

वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं

अब ऐसे लोग तो कम देखने में आते हैं

कहीं नहीं है मिनारा न मिम्बर ओ मेहराब

महल-सरा से हरम देखने में आते हैं

तवाफ़-ए-कू-ए-सुख़न ख़त्म ही नहीं होता

कोई नहीं है तो हम देखने में आते हैं

अटे हुए हैं ग़ुबार-ए-शिकस्तगी में 'सलीम'

जो आईने पस-ए-ग़म देखने में आते हैं

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In Hindi By Famous Poet Saleem Kausar. is written by Saleem Kausar. Complete Poem in Hindi by Saleem Kausar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.