अँधेरे को निगलता जा रहा हूँ
दिया हूँ और जलता जा रहा हूँ
Jaun Eliya
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ग़मों की आग पे सब ख़ाल-ओ-ख़द सँवारे गए
लफ़्ज़ ले कर ख़याल की वुसअत
आख़िरी पड़ाव
शाख़-दर-शाख़ तिरी याद की हरियाली है
दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है
मशवरा
बस लौट आना
मैं रात हव्वा
फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में शाख़ से पत्ता निकाल दे