खो दिए हैं चाँद कितने इक सितारा माँग कर
खो दिए हैं चाँद कितने इक सितारा माँग कर
मुतमइन हैं किस क़दर फिर भी ख़सारा माँग कर
मौज के हमराह था तो सारा दरिया साथ था
हो गया ग़र्क़ाब लहरों से किनारा माँग कर
राख में अब ढूँढता हूँ मैं दर-ओ-दीवार को
घर दिया है आग को मैं ने शरारा माँग कर
तेरी मर्ज़ी हो तो भर कश्कोल-ए-दिल ख़ाली मिरा
मैं नहीं लूँगा तुझे तुझ से दोबारा माँग कर
अपने पाँव पर चलूँगा मैं अपाहिज तो नहीं
रास्ते कटते नहीं हैं यूँ सहारा माँग कर
ख़्वाब की मिट्टी को गूँधूँगा लहू से मैं 'फ़िगार'
घर बनाना ही नहीं धरती से गारा माँग कर
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