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सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ - सलीम फ़राज़ कविता - Darsaal

सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ

सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ

में अब आराम से कुछ देर सोना चाहता हूँ

शजर को बार-आवर देखना मक़्सद नहीं है

कि में तो बस ज़मीं पर ख़्वाब बोना चाहता हूँ

मिरे हँसते हुए बच्चो ये सारा घर तुम्हारा

मैं रोने के लिए बस एक कोना चाहता हूँ

नवाह-ए-ज़ीस्त में क्यूँ बारिशें होती नहीं हैं

मैं पिछले मौसमों के ज़ख़्म धोना चाहता हूँ

बस उस के आने तक मौसम मुझे सरसब्ज़ रखना

उसे इक ख़ार अब मैं भी चुभोना चाहता हूँ

मुझे बे-ख़्वाब रखती है कभी दुनिया कभी दिल

मैं बच्चों की तरह बे-फ़िक्र सोना चाहता हूँ

हवाओ क्या तुम्हारा मेहरबाँ शाना मिलेगा

दहाड़ें मार कर मैं आज रोना चाहता हूँ

जिसे है जाँ अज़ीज़ अपनी उतर जाए किनारे

मैं अपनी नाव मौजों में डुबोना चाहता हूँ

'सलीम' अब आँधियों से हम-रकाबी किस लिए है

सर-ए-मिज़्गाँ बचा क्या है कि खोना चाहता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Saleem Faraz. is written by Saleem Faraz. Complete Poem in Hindi by Saleem Faraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.