सलीम फ़राज़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सलीम फ़राज़
नाम | सलीम फ़राज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Saleem Faraz |
ये ख़याल अब तो दिल-आज़ार हमारे लिए है
वो तीरगी-ए-शब है कि घर लौट गए हैं
उसे ख़ुद को बदल लेना गवारा भी नहीं होता
तिरी निगाह की जब से मुआवनत न रही
सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ
क्या लुत्फ़ हवाओं के सफ़र में नहीं रक्खा
कुछ नए ख़्वाब हर इक फ़स्ल में पाले गए हैं
किस ने कहा कि मुझ को ये दुनिया नहीं पसंद
कम रंज मौसम-ए-गुल-ए-तर ने नहीं दिया
हर-चंद तिरे ग़म का सहारा भी नहीं है
हर-चंद मिरा शौक़-ए-सफ़र यूँ न रहेगा
फ़स्ल-ए-जुनूँ में दामन-ओ-दिल चाक भी नहीं
एक तो दुनिया का कारोबार है
इक एक लफ़्ज़ में कई पहलू कहाँ से आए
देख माज़ी के दरीचों को कभी खोला न कर
अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते
अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है