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जी में आता है कि इक रोज़ ये मंज़र देखें - सलीम बेताब कविता - Darsaal

जी में आता है कि इक रोज़ ये मंज़र देखें

जी में आता है कि इक रोज़ ये मंज़र देखें

सामने तुझ को बिठाएँ तुझे शब-भर देखें

बंद है शाम से ही शहर का हर दरवाज़ा

आ शब-ए-हिज्र कि अब और कोई घर देखें

ऐसे हम देखते हैं दिल के उजड़ने का समाँ

जिस तरह दासियां जलता हुआ मंदर देखें

मेरे जंगल में ही मंगल का समाँ है पैदा

शहर के लोग मिरे गाँव में आ कर देखें

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In Hindi By Famous Poet Saleem Betab. is written by Saleem Betab. Complete Poem in Hindi by Saleem Betab. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.