उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे
उस एक शख़्स में किस किस को देखता था मैं
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आफ़ाक़
ख़ुद अपनी दीद से अंधी हैं आँखें
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
हम ने शिकवा कभी किया न करें
तर्क उन से रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात हो गई
जिन
उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
सख़्त बीवी को शिकायत है जवान-ए-नौ से
इस आँख में ख़्वाब-ए-नाज़ हो जा
हर आँख का हासिल दूरी है