क़ुर्ब-ए-बदन से कम न हुए दिल के फ़ासले
इक उम्र कट गई किसी ना-आश्ना के साथ
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Habib Jalib
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Gulzar
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Parveen Shakir
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अब
मोहल्ले वाले मेरे कार-ए-बे-मसरफ़ पे हँसते हैं
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
नींद से पहले
जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
मैं तुझ को कितना चाहता हूँ
आँसुओं से तू है ख़ाली दर्द से आरी हूँ मैं
नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं
ये नहीं है कि नवाज़े न गए हों हम लोग
मेरा दुश्मन