नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
वो दिन भी थे तिरे एहसास में ख़ुदा था मैं
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आँखों में सितारे से चमकते रहे ता-देर
मैं वो मअ'नी-ए-ग़म-ए-इश्क़ हूँ जिसे हर्फ़ हर्फ़ लिखा गया
आँसुओं से तू है ख़ाली दर्द से आरी हूँ मैं
मैं तुझ को कितना चाहता हूँ
बदन की आग को कहते हैं लोग झूटी आग
उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे
ज़मीं यख़-बस्ता हो जाती है जब जाड़ों की रातों में
देवता बनने की हसरत में मुअल्लक़ हो गए
और तो क्या दिया बहारों ने
लिबास-ए-दर्द भी हम ने उतारा
बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है