जाने अंदर क्या हुआ मैं शोर सुन कर ऐ 'सलीम'
उस जगह पहुँचा तो देखा बंद वो दरवाज़ा था
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समाअतों को अमीन-ए-नवा-ए-राज़ किया
उन को जल्वत की हवस महफ़िल में तन्हा कर गई
जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ
किन नक़ाबों में है मस्तूर वो हुस्न-ए-मा'सूम
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
साथ उस के रह सके न बग़ैर उस के रह सके
मैं ग़म को बसा रहा हूँ दिल में
पागल
माने तो किस की दीवाना माने
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक