इक आग सी जलती रही ता-उम्र लहू में
हम अपने ही एहसास में पकते रहे ता-देर
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(464) Peoples Rate This
नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
जिस का इंकार भी इंकार न समझा जाए
बजा ये रौनक़-ए-महफ़िल मगर कहाँ हैं वो लोग
न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था
मैं वो मअ'नी-ए-ग़म-ए-इश्क़ हूँ जिसे हर्फ़ हर्फ़ लिखा गया
ख़ुद अपनी लौ में था मेहराब-ए-जाँ में जलता था
जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई
जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं
वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी
हर आँख का हासिल दूरी है
जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ