दुख दे या रुस्वाई दे
ग़म को मिरे गहराई दे
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माने तो किस की दीवाना माने
जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में
ज़मीं यख़-बस्ता हो जाती है जब जाड़ों की रातों में
आँसुओं से तू है ख़ाली दर्द से आरी हूँ मैं
देवता बनने की हसरत में मुअल्लक़ हो गए
हर आँख का हासिल दूरी है
नुक़्ता
शायद कोई बंदा-ए-ख़ुदा आए
कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था
उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे
मुझे इन आते जाते मौसमों से डर नहीं लगता
एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई