बदन की आग को कहते हैं लोग झूटी आग
मगर उस आग ने दिल को मिरे गुदाज़ किया
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(434) Peoples Rate This
जाने अंदर क्या हुआ मैं शोर सुन कर ऐ 'सलीम'
दिल जो इस बज़्म में आता है तो जाता ही नहीं
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
बहुत तवील मिरी दास्तान-ए-ग़म थी मगर
दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ
इतनी काविश भी न कर मेरी असीरी के लिए
हाल मत पूछ मोहब्बत का हवा है कुछ और
मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का
उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे
ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें