सुब्ह को बिस्तर से उठा
होटल में जाने के लिए
बाज़ार में आया
देखा
सब उल्टे हैं
सब मुझ को देख के हँसते थे
आवाज़े कसते थे
तुम उल्टे हो
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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मुझ से कहता है कि साए की तरह साथ हैं हम
जिस आग से दिल सुलग रहे थे
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
मुझ को दुश्वार हुआ जिस का नज़ारा तन्हा
जिन
खेल
मेरा दुश्मन
माने तो किस की दीवाना माने
बुरा लगा मिरे साक़ी को ज़िक्र-ए-तिश्ना-लबी
दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
हर आँख का हासिल दूरी है
घास में जज़्ब हुए होंगे ज़मीं के आँसू