मेरे घर के दरवाज़े पर....
दस्तक देने वाले ने पूछा!!
इन्दर कौन है
मैं हूँ
चंद सदाएँ आईं
ये सब झूटे हैं
मैं तो शहर से बाहर गया हुआ हूँ
मेरे पीछे!
घर के नौकर ''मैं'' बन बैठे हैं
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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क़ुर्ब-ए-बदन से कम न हुए दिल के फ़ासले
मुझ को दुश्वार हुआ जिस का नज़ारा तन्हा
कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था
मेरा चेहरा
मैं वो मअ'नी-ए-ग़म-ए-इश्क़ हूँ जिसे हर्फ़ हर्फ़ लिखा गया
तिरे साँचे में ढलता जा रहा हूँ
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है
दीदनी है हमारी ज़ेबाई
तू शीशा बने कि संग कुछ बन
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए