वो एक लम्हा जो ''अब'' नहीं है
गुज़र चुका है
है आने वाला
गुज़र चुका है जो एक लम्हा वो मैं नहीं हूँ
है आने वाला जो एक लम्हा वो तू नहीं है
कि एक लम्हा हैं
दोनों हम तुम
वो एक लम्हा जो सिर्फ़ ''अब'' है
यही अज़ल है
यही अबद है
Gulzar
Rahat Indori
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दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
किसी दश्त का लब-ए-ख़ुश्क हूँ जो न पाए मुज़्दा-ए-आब तक
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
कौन तू है कौन मैं कैसी वफ़ा
ज़िंदगी मौत के पहलू में भली लगती है
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
हाल-ए-दिल कौन सुनाए उसे फ़ुर्सत किस को
बजा ये रौनक़-ए-महफ़िल मगर कहाँ हैं वो लोग
सच तो कह दूँ मगर इस दौर के इंसानों को
न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर
साथ उस के रह सके न बग़ैर उस के रह सके