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स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का - सलीम अहमद कविता - Darsaal

स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का

स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का

कि यही हाल है अंदर से तमाशाई का

बज़्म के हाल पे अब हम नहीं कुढ़ने वाले

इंतिज़ामात में क्या दख़्ल तमाशाई का

हम तो सौ झूट भी बोलें वो अगर हाथ आए

कोई ठेका तो उठाया नहीं सच्चाई का

दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता को जा जा के दिखाएँ यारो

शहर में काम नहीं लाला-ए-सहराई का

लोग कहते हैं हवस को भी मोहब्बत जैसे

नाम पड़ जाए मुजाहिद किसी बलवाई का

ये नहीं है कि नवाज़े न गए हों हम लोग

हम को सरकार से तमग़ा मिला रुस्वाई का

उन को टूटा हुआ दिल हम भी दिखाएँगे 'सलीम'

कोई पूछ आए वो क्या लेते हैं बनवाई का

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In Hindi By Famous Poet Saleem Ahmed. is written by Saleem Ahmed. Complete Poem in Hindi by Saleem Ahmed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.