सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
इश्क़ है और हिज्र की तन्हाइयाँ
रात कहती है कि कटने की नहीं
दर्द कहता है करम-फ़रमाइयाँ
बैन करती है दरीचों में हवा
रक़्स करती हैं सियह परछाइयाँ
ख़ामुशी जैसे कोई आह-ए-तवील
सिसकियाँ लेती हुई तन्हाइयाँ
कौन तू है कौन मैं कैसी वफ़ा
हासिल-ए-हस्ती हैं कुछ रुस्वाइयाँ
याद से तेरी सुकूँ यूँ आ गया
सुब्ह दम जैसे चलें पुरवाइयाँ
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