Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_1356acc412bafdcad12e56ace7467d1d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ - सलीम अहमद कविता - Darsaal

जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ

जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ

अँधेरी रात है काग़ज़ पे मैं तारे बनाता हूँ

मोहल्ले वाले मेरे कार-ए-बे-मसरफ़ पे हँसते हैं

मैं बच्चों के लिए गलियों में ग़ुब्बारे बनाता हूँ

वो लोरी गाएँगी और उन में बच्चों को सुलाएँगी

मैं माओं के लिए फूलों के गहवारे बनाता हूँ

फ़ज़ा-ए-नील-गूँ में हसरत-ए-परवाज़ तो देखो

मैं उड़ने के लिए काग़ज़ के तय्यारे बनाता हूँ

मुझे रंगों से अपने हैरतें तख़्लीक़ करनी हैं

कभी तितली कभी जुगनू कभी तारे बनाता हूँ

ज़मीं यख़-बस्ता हो जाती है जब जाड़ों की रातों में

मैं अपने दिल को सुलगाता हूँ अँगारे बनाता हूँ

तिरा दस्त-ए-हिनाई देख कर मुझ को ख़याल आया

मैं अपने ख़ून से लफ़्ज़ों के गुल-पारे बनाता हूँ

मुझे इक काम आता है ये लफ़्ज़ों के बनाने का

कभी मीठे बनाता हूँ कभी खारे बनाता हूँ

बुलंदी की तलब है और अंदर इंतिशार इतना

सो अपने शहर की सड़कों पे फ़व्वारे बनाता हूँ

(513) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Saleem Ahmed. is written by Saleem Ahmed. Complete Poem in Hindi by Saleem Ahmed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.