Ghazals of Saleem Ahmed
नाम | सलीम अहमद |
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अंग्रेज़ी नाम | Saleem Ahmed |
जन्म की तारीख | 1927 |
मौत की तिथि | 1983 |
जन्म स्थान | Karachi |
ज़िंदगी मौत के पहलू में भली लगती है
ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी
उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया
तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं
तिरे साँचे में ढलता जा रहा हूँ
तर्क उन से रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात हो गई
स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का
सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
समाअतों को अमीन-ए-नवा-ए-राज़ किया
'सलीम' दिल को मयस्सर सकूँ ज़रा न हुआ
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
नया मज़मूँ किताब-ए-ज़ीस्त का हूँ
न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर
न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था
मुझ को दुश्वार हुआ जिस का नज़ारा तन्हा
मुझे इन आते जाते मौसमों से डर नहीं लगता
मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का
मेरी ग़ज़ल में एक नया सोज़-ए-जाँ भी है
मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ
माने तो किस की दीवाना माने
मजबूरियों का पास भी कुछ था वफ़ा के साथ
मैं उस को भूल गया था वो याद सा आया
मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर
लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा
कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं
कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं
किसी दश्त का लब-ए-ख़ुश्क हूँ जो न पाए मुज़्दा-ए-आब तक