ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी
जाने क्या सोच के आवाज़ दिए जाता हूँ
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रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह
हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं
मुझ को तो ख़ून-ए-दिल ही पीना है
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर
गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
चंद तिनकों के सिवा क्या था नशेमन में मिरे
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार
सौ बार आई होंटों पे झूटी हँसी मगर
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए