तीरा-ओ-तार फ़ज़ाओं में जिया हूँ अब तक
निकहत-ओ-नूर के अय्याम की हसरत ही रही
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(502) Peoples Rate This
ताबानी-ए-रुख़ ले कर तुम सामने जब आए
कटेगी कैसे गुल-ए-नौ की ज़िंदगी या-रब
क्या इसी को बहार कहते हैं
सौ बार आई होंटों पे झूटी हँसी मगर
ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर
चंद तिनकों के सिवा क्या था नशेमन में मिरे
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह