रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह
अगर चराग़-ए-मोहब्बत कोई जला के चले
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
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आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार
क्या इसी को बहार कहते हैं
गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा
ताबानी-ए-रुख़ ले कर तुम सामने जब आए
कटेगी कैसे गुल-ए-नौ की ज़िंदगी या-रब
मुझ को तो ख़ून-ए-दिल ही पीना है
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी