हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए
वो हसीन दिन भी थे किस क़दर जो तुम्हारे साथ गुज़र गए
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(457) Peoples Rate This
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
क्या इसी को बहार कहते हैं
ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी
रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द
गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें
तीरा-ओ-तार फ़ज़ाओं में जिया हूँ अब तक