हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं
है वर्ना चाँद बयाबाँ किसी को क्या मालूम
Jaun Eliya
Gulzar
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है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार
शबनम ने रो के जी ज़रा हल्का तो कर लिया
चंद तिनकों के सिवा क्या था नशेमन में मिरे
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
ताबानी-ए-रुख़ ले कर तुम सामने जब आए
मुझ को तो ख़ून-ए-दिल ही पीना है
क्या इसी को बहार कहते हैं
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए
सौ बार आई होंटों पे झूटी हँसी मगर
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा