गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
चले जो कोई तो दामन ज़रा बचा के चले
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आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
चंद तिनकों के सिवा क्या था नशेमन में मिरे
गुल-ओ-ग़ुंचा अस्ल में हैं तिरी गुफ़्तुगू की शक्लें
हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं
यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
सौ बार आई होंटों पे झूटी हँसी मगर
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द