बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
किस शाख़-ए-गुलिस्ताँ पे मिरा आशियाँ नहीं
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कटेगी कैसे गुल-ए-नौ की ज़िंदगी या-रब
हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
क्या इसी को बहार कहते हैं
शबनम ने रो के जी ज़रा हल्का तो कर लिया
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर
मुझ को तो ख़ून-ए-दिल ही पीना है
सौ बार आई होंटों पे झूटी हँसी मगर
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार