सलाम संदेलवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सलाम संदेलवी
नाम | सलाम संदेलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Salam Sandelvi |
यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर
ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी
तीरा-ओ-तार फ़ज़ाओं में जिया हूँ अब तक
शबनम ने रो के जी ज़रा हल्का तो कर लिया
सौ बार आई होंटों पे झूटी हँसी मगर
रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह
मुझ को तो ख़ून-ए-दिल ही पीना है
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
क्या इसी को बहार कहते हैं
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
कटेगी कैसे गुल-ए-नौ की ज़िंदगी या-रब
हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए
हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं
है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें
गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
गुल-ओ-ग़ुंचा अस्ल में हैं तिरी गुफ़्तुगू की शक्लें
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार
चंद तिनकों के सिवा क्या था नशेमन में मिरे
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा
ताबानी-ए-रुख़ ले कर तुम सामने जब आए
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द