यूँ ही आँखों में आ गए आँसू
जाइए आप कोई बात नहीं
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कभी कभी तो सुना है हिला दिए हैं महल
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
मेरी मौत ऐ साक़ी इर्तिक़ा है हस्ती का
तसलसुल
वो सिर्फ़ मैं हूँ जो सौ जन्नतें सजा कर भी
ऐ मिरे घर की फ़ज़ाओं से गुरेज़ाँ महताब
सड़क बन रही है
ग़म पर हैं तअ'ना-ज़न तो ख़ुशी भी निभाइए
अंदेशा
शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब
अब मा-हसल हयात का बस ये है ऐ 'सलाम'