रोज़ पूजा के लिए फूल सजाता है 'सलाम'
जाने कब उस का ख़ुदा सू-ए-ज़मीं आएगा
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धरती अमर है
हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है
अब मा-हसल हयात का बस ये है ऐ 'सलाम'
शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब
कश्मकश
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
यूँ ही आँखों में आ गए आँसू
अब अयादत को मिरी कोई नहीं आएगा
बहुत दिनों की बात है....
अंदेशा
मैं तो कहता हूँ तुम्ही दर्द के दरमाँ हो ज़रूर
ड्राइंग-रूम