मेरी मौत ऐ साक़ी इर्तिक़ा है हस्ती का
इक 'सलाम' जाता है एक आने वाला है
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(563) Peoples Rate This
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में
हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए
हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है
बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए
शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे
आज तो शम्अ हवाओं से ये कहती है 'सलाम'
अजीब बात है मैं जब भी कुछ उदास हुआ
यूँ ही आँखों में आ गए आँसू
आँसू हूँ हँस रहा हूँ शगूफ़ों के दरमियाँ
ग़म पर हैं तअ'ना-ज़न तो ख़ुशी भी निभाइए
धरती अमर है