काश तुम समझ सकतीं ज़िंदगी में शाएर की ऐसे दिन भी आते हैं
जब उसी के पर्वर्दा चाँद उस पे हँसते हैं फूल मुस्कुराते हैं
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(675) Peoples Rate This
कभी कभी तो सुना है हिला दिए हैं महल
गुरेज़
ड्राइंग-रूम
ग़म मुसलसल हो तो अहबाब बिछड़ जाते हैं
इन ग़ज़ालान-ए-तरह-दार को कैसे छोड़ूँ
तुम्हें मिरे ख़याल की मुसव्विरी क़ुबूल हो
पीतल का साँप
हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए
मेरी मौत ऐ साक़ी इर्तिक़ा है हस्ती का
धरती अमर है
ग़म पर हैं तअ'ना-ज़न तो ख़ुशी भी निभाइए