अब मा-हसल हयात का बस ये है ऐ 'सलाम'
सिगरेट जलाई शे'र कहे शादमाँ हुए
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कश्मकश
आँसू हूँ हँस रहा हूँ शगूफ़ों के दरमियाँ
अवाम
रद्द-ए-अमल
मेरी फ़िक्र की ख़ुशबू क़ैद हो नहीं सकती
अस्पताल
यूँ ही आँखों में आ गए आँसू
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
ऐ मिरे घर की फ़ज़ाओं से गुरेज़ाँ महताब
काश तुम समझ सकतीं ज़िंदगी में शाएर की ऐसे दिन भी आते हैं
मजबूरियाँ