मजबूरियाँ
मुझे नफ़रत नहीं है इश्क़िया अशआ'र से लेकिन
अभी इन को ग़ुलामाबाद में मैं गा नहीं सकता
मुझे नफ़रत नहीं है हुस्न-ए-जन्नत-ज़ार से लेकिन
अभी दोज़ख़ में इस जन्नत से दिल बहला नहीं सकता
मुझे नफ़रत नहीं पाज़ेब की झंकार से लेकिन
अभी ताब-ए-नशात-ए-रक़्स-ए-महफ़िल ला नहीं सकता
अभी हिन्दोस्ताँ को आतिशीं नग़्मे सुनाने दो
अभी चिंगारियों से बर्ग-ए-गुल रंगीं बनाने दो
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