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हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है - सलाम मछली शहरी कविता - Darsaal

हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है

हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है

हयात साग़र-ए-रंगीं में ढल तो सकती है

बस इक लतीफ़ तबस्सुम बस इक हसीन नज़र

मरीज़-ए-दिल की ये हालत सँभल तो सकती है

जहाँ से छोड़ रहे हो मुझे अँधेरे में

वहीं से राह-ए-मोहब्बत निकल तो सकती है

फिर अपने गुंचा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर का क्या होगा

नसीम-ए-सुब्ह मिरी सम्त चल तो सकती है

तिरी निगाह-ए-करम की क़सम है अब भी मुझे

यही यक़ीन कि दुनिया बदल तो सकती है

'सलाम' जाम-ओ-सुबू की ये शाइरी मालूम

वगर्ना अपनी तबीअ'त बहल तो सकती है

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In Hindi By Famous Poet Salam Machhli Shahri. is written by Salam Machhli Shahri. Complete Poem in Hindi by Salam Machhli Shahri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.