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फागुन - सलाहुद्दीन परवेज़ कविता - Darsaal

फागुन

आँगन में इक शजर है

दालान में हवाएँ

कमरे में एक लड़की

उजली उदास लड़की

वाटर-कलर से दिल पे पत्ते बना रही है

इतने में पेड़ आया

कमरे में पेड़ आया

पत्ते गिरा के बोला ''बाहर हवा बहुत है''

लड़की थी पहले उजली अब पीली हो गई है

फिर चंद पल बीते दाख़िल हुई हवाएँ

पत्ते उड़ा के बोलीं अंदर हवा बहुत है

लड़की थी पहले पीली अब लाल हो गई है

वो लाल लाल लड़की अब बे-क़रार हो के

वाटर-कलर का डब्बा दिल में कहीं छुपाए

आँचल में कुछ हवाएँ दामन में चंद पत्ते

दालान से गुज़र के आँगन को पार कर के

मैदान-ए-नौहा-ख़्वाँ में आ के ठिठक गई है

मैदान-ए-नौहा-ख़्वाँ में इक कैनवस रखा है

इस कैनवस के दिल पे वाटर-कलर में भीगा

फागुन का हर हरा है कब से वो जल रहा है!

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In Hindi By Famous Poet Salahuddin Parvez. is written by Salahuddin Parvez. Complete Poem in Hindi by Salahuddin Parvez. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.