दो साँसों की गहराई में

दो साँसों की गहराई में

जहाँ लहू

बेहद भीतर के, बिल्कुल साकित

मैदानों में

चाँद की हर रंगत बहता है

वहाँ पली

इक नंगी नारी

बेहद भीतर की रखवाली

चाँदी जैसे लहू को अपने

बदन में भी तन्हा पाती है,

शुनवाई से दूर हमेशा

शुनवाई का लब होता है

नंगी नारी

दो साँसों के बेहद भीतर

साँस के बन में

घबराती है

चाँद हमेशा से बहता है

साँस हमेशा ही जारी है

रात निगाहों के अंदर भी

बाहर भी! इक बेदारी है

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In Hindi By Famous Poet Salahuddin Mahmood . is written by Salahuddin Mahmood . Complete Poem in Hindi by Salahuddin Mahmood . Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.