आवाज़ों से जिस्म हुआ नम
आवाज़ों से जिस्म हुआ नम
जैसे इक ना-बीना सा ग़म
होंटों में दरिया का क़तरा
चादर में ख़ुश-बू जैसा ख़म
आईनों का रंग हमेशा
ऐसा जैसे होंटों में दम
कम होती आँखों के भीतर
बीनाई के शीतल सरगम
सर ऊँचा ऊँची तन्हाई
क़दमों में बेगाना आदम
दरिया में उर्यां हर लम्हा
बाहोँ के अंदर बहता यम
नम चेहरे ख़म होते चादर
चेहरों में यकसाँ होते सम
शब की इक तन्हा सीरत में
लब की हर दस्तक होती कम
इक दस्तक दस्तक को सुनती
लोहू का साकित होता ख़म
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